Bluepad
पलायन
ठाकुर योगेन्द्र सिंह
4th Oct, 2020
Share
स्वरचित कविता (1979)
मुझसे मिलकर जाते,
गर यूं ही जाना था।
कितना अच्छा होता,
मैं तुमको विदा करता।।
हम साथ रहे हरदम,
फिर भी ना पहचाना,
मैंने समझा अपना,
पर तुमने बेगाना।।
क्यों मोड़ रहे अपने,
अरमानों की सरिता।
कितना अच्छा होता,
मैं तुमको विदा करता।।
घर छोड़ के मानव की,
क्या मुश्किल हल होगी।
तो घर क्या, छोड़ गया,
होता दुनियां "योगी"।।
देकर अपने आंसू,
तेरी पीड़ा हरता।
कितना अच्छा होता,
मैं तुमको विदा करता।।
घर ने जो तुम्हें दिया,
तुमसे जो उसे मिला।
कुछ फर्क नहीं ज्यादा,
फिर किससे करें गिला।।
ये सुख जो ना होता,
क्यों दुख सहना पड़ता।
कितना अच्छा होता,
मैं तुमको विदा करता।।
मिलता तो क्या देता,
कुछ पास नहीं मेरे।
है तो कुछ दिन बाकी,
वो भी तम ने घेरे।।
ले कर्ज दुआओं का,
तेरी झोली भरता।
कितना अच्छा होता,
मैं तुमको विदा करता।।
क्या पता कहां होगे,
तुम कैसी हालत में।
क्या पाएगी किस्मत,
दुनियां की अदालत में।।
क्यों गए अकेले तुम,
शायद मै भी चलता।
कितना अच्छा होता,
मैं तुमको विदा करता।।
21
Share
Written by
ठाकुर योगेन्द्र सिंह
Comments
SignIn to post a comment
Recommended blogs for you
Bluepad
Home
Sign In
शोधा
About Us