कोरोनासे संक्रमित पूरी दुनिया को अब आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है। इसकी चपेट में आने वाले देशों का और एक दर्द यह है कि कोरोना को पूरी दुनिया पर हावी होने के लिए मार्च का मतलब आर्थिक वर्ष की शुरुआत का ही समय मिला था। उसका सीधा असर जीडीपी याने सकल घरेलू उत्पाद के दरों पर हुआ है। हमारे सांख्यिकी मंत्रालय ने इसकी सांख्यिकी पेश की जिसने पूरे देश को झकझोड़ कर रख दिया। जैसे किसी का बना बनाया महल अकस्मात धराशायी हो गया हो! केंद्र सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार २०२० – २०२१ के वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून के बीच विकास दर में २३.९ फीसदी की गिरावट दर्ज की है। ऐसा अनुमान लगाया गया था कि कोरोना वायरस महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण भारत की जीडीपी की दर पहली तिमाही में १८ फ़ीसदी तक गिर सकती है। एसबीआई बैंक ने भी अनुमान लगाया था कि यह दर १६.५ फ़ीसदी तक गिर सकती है लेकिन जो आंकड़े आए है वो निश्चित तौर पर हमारे आर्थिक स्थिति के बदतर हालात दर्शाती है। इस तरह की बड़ी गिरावट १९९६ में देखी गई थी।
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कोरोना के चलते लोगों में ख़रीदारी ज्यादा मात्रा में हुई नहीं, ना ही उद्योगों को चलाने का मौका मिला। जिसके कारण उसमें लगने वाला सामान भी खरीदा नहीं गया। इससे उपभोक्ता ख़र्च धीमा हुआ, निजी निवेश और निर्यात कम हुआ। वहीं, बीते साल इसी जून तिमाही की दर ५.२ फ़ीसदी थी।
हम अगर बाकी देशो की जीडीपी की तरफ नजर डालें तो अमेरिका का जीडीपी रेट १०.६ से, जर्मनी का ११.९ से, इटली का १७.१ से फ्रांस का १८.९से ब्रिटन का २२.१ से और स्पेन का २२.७ से गिरा है। तो पूरी दुनिया ही इस आर्थिक संकट में डूब गई है और उसे अपने आपको फिर से संभालना होगा।
लेकिन जिस तरह से हमारी वित्त मंत्री निर्मला सितारामन ने पूरे कोविड १९ के इस संकट को “एक्ट ऑफ गॉड” कहा उससे ऐसे लगता है की मंत्रिजी अपनी ज़िम्मेदारी झटक रही है। भारत सरकार ने लॉकडाउन से प्रभावित अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए मई में २० लाख करोड़ के आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की थी। इस के तहत ५.९४ लाख करोड़ रुपये की रकम मुख्य तौर पर छोटे व्यवसायों को क़र्ज़ देने और ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों और बिजली वितरण कंपनियों की मदद के नाम पर आवंटित करने की घोषणा की गई थी। इसके अलावा ३.१० लाख करोड़ रुपये प्रवासी मज़दूरों को दो महीने तक मुफ़्त में अनाज देने और किसानों को क़र्ज़ देने में इस्तेमाल करने के लिए देने की घोषणा की गई थी। १.५ लाख करोड़ रुपये खेती के बुनियादी ढाँचे को ठीक करने और कृषि से जुड़े संबंधित क्षेत्रों पर ख़र्च करने के लिए आवंटित करने की घोषणा की गई थी. लेकिन इस पैकेज के ऐलान को भी अब तीन महीने बीत चुके हैं। अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होकर भी एक महिना बीत चुका है। बाज़ार भी अधिकांश जगहों पर खुल चुके हैं। लॉकडाउन के दौरान लोगों को बैंक से लिए कर्ज़ पर राहत देने की भी बात कही गई। लेकिन इन तमाम प्रयासों के बावजूद अर्थव्यवस्था संभलती नहीं दिख रही है। केंद्र सरकार ने चालू वित्त वर्ष में जीएसटी राजस्व प्राप्ति में २.३५ लाख करोड़ रुपये की कमी का अनुमान लगाया है।
जानकारों का मानना है की भले ही बाजार खुल गए हैं लेकिन अभी डिमांड पहले की तरह नहीं हो रही है। एक तो लोगों के पास पैसे नहीं है इसलिए वो ख़रीदारी नहीं कर पा रहे हैं। इसलिए सरकार कितने भी प्रयास कर लें, लोगों की ख़रीदारी की शक्ति जब तक वापस नहीं आएगी तब तक बाजार के हालात ऐसे ही रहेंगे। आज की तारीख में ख़रीदारी की क्षमता सिर्फ कॉर्पोरेट के पास है लेकिन सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स घटाकर ३० फीसदी से २५ फीसदी। इससे सीधे एक लाख करोड़ का नुक़सान सरकार के राजस्व का हुआ। वहीं दूसरी तरफ ना कॉरपोरेट ने अपना खर्च बढ़ाया और ना ही अपना निवेश। तो सरकार ने इस कदम से अपनी बदतर होती राजस्व की स्थिति को और नुक़सान में डाल दिया। जब जीडीपी के आंकड़े कमज़ोर होते हैं तो हर कोई अपने पैसे बचाने में लग जाता है। लोग कम पैसा खर्च करते हैं और कम निवेश करते हैं इससे आर्थिक ग्रोथ और सुस्त हो जाती है।
अर्थशास्त्री मानते हैं कि लोग बाज़ार में खरीदारी करने को प्रोत्साहित हो और बाज़ार में डिमांड में बढ़े, शहरी और ग्रामीण मनरेगा, किसानों के लिए न्यूनतम आय गारंटी योजना लाना, इन्हीं तरीक़ों से बाज़ार को फिर से पटरी पर लाया जा सकता है। अब सरकार के फैसले ही देश को संभाल सकते हैं। क्यूंकि ख़रीदारी करने वाला तो कह रहा है,
“अभी तंग है जेब मेरी, मुझे मेरी औकात में रहने दो....”