इतिहास पर गौर करें तो आदिम समयम में कपड़े की कोई संकल्पना नहीं थी। पहले महिलाएं हो या पुरूष सभी पत्तों से अपने शरीर को ढ़कते थे। समय के साथ बदलाव होते गया। मौर्य और शुंग राजवंश के वक्त की प्रस्तर प्रतिमाएं ये बताती हैं कि तब स्त्री और पुरुष आयताकार कपड़े का एक टुकड़ा शरीर के निचले हिस्से में और एक ऊपरी हिस्से में पहना करते थे।
जैसे-जैसे समय का बदलाव होता गया कपड़े की आवश्यकता स्त्री को महसूस होने लगी। सातवीं और आठवीं सदी के दौरान स्त्रियां के कमर से ऊपर के कपड़े टंके हुए होते थे और उनका वक्षस्थल एक पट्टी से ढका होता था। वे कमर से नीचे के कपड़े भी पहना करती थी। महिलाओं द्वारा यह कपड़े सिर्फ तन को ढ़कने के लिए नहीं बल्कि भारत की जलवायु को ध्यान में रखकर पहना जाता था।
भारत हमेशा से विविधताओं का देश रहा है। यहां विभिन्न जाति और क्षेत्र के अपने पहनावे होते थे। दक्षिण भारत में कि औपनिवेशिक दौर में भी कुछ महिलाएं अपने शरीर का ऊपरी हिस्सा नहीं ढंकती थी। भारत और अन्य संस्कृतियों का एक दूसरे के साथ संपर्क होने की शुरूआत हुई। इस शुरूआत के साथ एक क्षेत्र के परिधान दूसरे क्षेत्र तक पहुंचने लगे। पहनावे में बदलाव आया। 15वीं सदी में मुसलमान और हिंदू औरतें अलग अलग तरह के कपड़े पहनती थी। मुस्लिम महिलाएं अपने को पूर्ण रूप से ढ़क लेती थी। संभवतः इसी दरम्यान सलवार कमीज की शुरूआत हुई हो। या ऐसा कह सकते हैं कि आज भारत का राष्ट्रीय पोशाक तब काफी प्रचलित था।
व्हीं यह भी देखने को मिलता है कि कुछ क्षेत्र की महिलाए साड़ी पहनती थी। वे साड़ी के भतर ब्लाऊज नहीं पहनती थी। महिलाओं के वक्ष पर कोई कपड़ा नहीं होता था। धीरे-धीरे महिलाओं ने ब्लाउज पहनना शुरू किया। मशहूर कवि रबींद्रनाथ टैगोर के भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर की पत्नी ज्ञानदानंदिनी देबी ने उस समय ब्लाउज, बंडी, कुर्ती और आज के दौर की साड़ी को फैशन में लाया। साड़ी के भीतर कमीज पहनने का चलन भी उस दौर में जबर्दस्त फैशन में था।
ळालांकि उस समय ब्लाउज से बीच का खालीपन दिखता था लेकिन फिर भी इसे शालीन और पारंपरिक माना जाता था। भारत में किसी महिला के लिए अपने शरीर को पूरी तरह से ढकना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसने भीतर क्या पहन रखा है। अंगे्रजों के समय विभिन्न प्रकार के डिजाइनदार ब्लाउज देखने को मिलते हैं।
भारत विविधताओं का देश है। यहां विभिन्न धर्म के लोग रहते हैं। विभिन्न सांस्कृतिक परपरांओं के आधार पर यहां वस्त्र धारण किया जाता है। साड़ी भारतीय उपमहाद्वीप में एक महिला परिधान है। एक साड़ी चार से नौ मीटर लंबाई, जो विभिन्न शैलियों में शरीर पर लिपटी है में लेकर बिना सिले कपड़े की एक पट्टी है। मेखेल सदोर पारंपरिक असमिया पोशाक है। यह सभी उम्र की महिलाओं द्वारा पहना जाता है। जो शरीर के चारों ओर लिपटी हैं कपड़े के तीन मुख्य टुकड़े हैं। सलवार कमीज सलवार कमीज पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में महिलाओं के पारंपरिक वस्त्र है और जो भारत (पंजाब क्षेत्र) के उत्तर-पश्चिमी भाग में सबसे आम है पंजाबी सूट कहा जाता है।
एक ग्गघग्र चोली या एक लेहंगा चोली राजस्थान और गुजरात में महिलाओं की पारंपरिक कपड़े है। पंजाबी भी उन्हें पहनते हैं।
समय बदलता गया। समय के साथ महिलाओं के परिधान में परिवर्तन भी हुआ। पहले कम कपड़े पहननेवाली महिलाएं एक समय पूरे शरीर को ढ़कती नजर आई। फिर पूरा शरीर भी कभी कम कपड़े पहनने लगा। इतिहास और वर्तमान जो भी हो लेकिन महिलाओं के परिधान हमेशा परिवर्तन के दौर से गुजरते हैं।