चलो-
कुछ तुम,
भूलो!
कुछ मैं भूलूं,।
कुछ,सजा!
तुम-
मुझको दो,
और-
कुछ सजा, मैं-
तुमको दूं।
आधा-आधा,
हिस्सा हो अपना,
गुनाह तो-
आखिर!
हम-
दोनों के हैं।
ठान ली है,
जब, तुमने-
तब मैं भी,
कोशिश!करता हूं।
न तुम-
मुझको याद करो,
न, मैं-
तुमको याद आऊं।
केवल-
एक वचन न दूंगा,
तेरी यादें
भूला न पाऊंगा।
© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर।
(चित्र: साभार)