आज-
बर्षों बाद!
पता नहीं क्यों?
तेरी याद आ रही।
बीते पल!
जो गुजरे थे,साथ कभी,
एक एक कर-
आंखों के सामने,
चलचित्र बनकर,
उभरने लगे।
याद हो आया,
बारिश के दिनों में,
लालटेन जलाकर-
रात गये तक,
झींगुरों की-
झनझनाहट के बीच,
तेरा,मेरे आने तक का,
इंतजार करना।
जल की बूंदों को,
रोक पाने में-
असमर्थ,उस-
टपकती छत के नीचे,
हम दोनों का होना,
तथा-
बिस्तर के चारों ओर,
भींगने से-
बचने के लिये,
लोटा, भगौना तथा-
बाल्टी रखकर भी,
आनंद के साथ होना।
सोचता हूं!
पता नहीं-
यह सब कुछ,
तुम्हें कभी?
याद आता है,
या नहीं?
© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर।
(चित्र:साभार)