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माली और गुलाब
O.N. Tripathi
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2nd Mar, 2023

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आखिर!
एक दिन,
माली ने,
इठलाते,हंसते,
खिलखिलाते-
कांटों के बीच,
गुलाब से-
पूछ ही लिया;
यह बताओ?
जन्म से-
खिलने तक,
इन-
कांटों के बीच,
रह कर!
जब तुम-
तोड़ लिये जाते हो,
किसी-
और के लिए,
तब तुम्हें-
दुख नहीं होता?
होता तो है-
अपनों! से,
बिछड़ने का दुख!!
बहुत होता है।
खास करके-
अपने-
भाईयों !!!
कांटों से।
जानते हो?
मेरे-
ये भाई!
दुसरों की,
नज़रों में,
बुरा बनकर भी,
मेरी रक्षा में,
तत्पर रहते हैं।
इसीलिए-
चुभते हैं ये।
मेरी-
परवाह में,
सदा-
तने रहने वाले,
मेरे कांटें!!!
मुझे-
तोड़ने वालों से,
जूझते हैं,
मेरी सुगंध!!
और-
रस!
लेने ‌वालों से नहीं।
मेरा-
हाल भी तो,
बेटी!
जैसा हो गया है,
मुकम्मल-
ज़हां!
मेरा भी,
कहां रहा?
पूरा तो-
मेरा!
न घर रहा,
और-
न ही चाहने वाले।
© ओंकार नाथ त्रिपाठी अशोक नगर बशारतपुर गोरखपुर उप्र।
माली और गुलाब

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