जब खुली आँखे हमरी ,
खुदको टूटके बिखराँ पाया ,
समेटने की भी ना चाह थी दिलमें ,
युही जमीनसे लिपटा पाया...
देखकर हमें छटपटाते ,
वो देखकर रह ना पाया ,
संभालो खुदको फैसला यही है,
और गम वो दे ना पाया ...
हम राजी किसी हालात के लिये,
और हालातों को वो नासूर कर ना पाया,
आह निकलती रही हमारी उस मोड पर ,
जहाँ वो हमे संग ले ना पाया ...
माफ तो हमने उनको कबका कर दिया,
माफ वो खुदको कर ना पाया,
हम तो जमीनसे लिपटे फिरसे लहराने लगे,
वो रूलाके हमें खुश रह ना पाया ...
ये कभी ना मांगा हमने दुआँमे ,
उसे जिंदगीमें खुशियों से दूर ना पाया ,
हम तो उसक लिये खुशियाही मांगते रहे दुआँमे ,
न जाने क्यो वो कभी खुश रह ना पाया ...
मै भुत हूँ उस का ,
आज का मेरा अस्तित्व वो सह ना पाया,
उजड जाऊ मै जुदाई मे सोचा उसने,
मुझे लहरातें देख वो सह ना पाया ...