कहने की तो वो हमेशा से मेरी अपनी थी।
पर कभी उसने मुझे अपना माना ही नहीं।
रिश्ता जरूर था मेरे साथ उसका।
पर उसने उस रिश्ते को कभी निभाया ही नहीं ।
हर वक्त उसने मुझे नजरंदाज किया।
कभी भी उसने मेरे जज्बातों को समझा ही नहीं।
उसकी हर बात को माना मैंने।
फिर चाहे उसने झूठ बोला हो या सच।
उसने तो एक बार भी सुना ही नहीं मुझे।
तरसता रह गया हर वक्त उसके वफ़ा के लिए मैं।
पर उसने तो कभी वफ़ा किया ही नहीं।