लक्ष्मण रेखा ..
स्वर्ण मृग ने सीता को आकर्षित किया ...
सीता सोचने लगी की इस पंचवटी उपवन में ये सुन्दर कोमल चंचल अदभुत मृग कहाँ से आया..
सीता ने कहा,
स्वामी.. मुझे वो स्वर्ण मृग ला दो ..
देखो कितने सुन्दर पशु पक्षी है यहाँ..
बस इस स्वर्ण मृग को लाकर इस कुटिया की शोभा बढा दो ..
भला राम कैसे अपनी सीता को रुष्ट करते ...
ये तो मात्र मृग है .. यदि सीता ब्रहमांड भी मांगती तो वो उसे उसके चरणों में ला कर रख देते ...
श्री राम बोले... ठीक है सीते.. मैं अभी उस स्वर्ण मृग को खोज कर लाता हूँ ..
लक्ष्मण... तुम तब तक सीता की रक्षा करना जब तक मैं लौट कर नहीं आता हूँ ..
श्री राम चले मृग की खोज में ..
मृग ने अपनी चमचमाती स्वर्ण काया से राम को भी मोहित किया ...
इससे पहले की राम उसे पकड़ पाते, मृग ने छम से अद्रश्य होकर राम को चौंका दिया ..
श्री राम समझ गए ... ये कोई स्वर्ण मृग नही अपितु कोई मायावी है ..
अवश्य ही कोई राक्षस है या कोई छलिया कपटी है ..
मृग ने तुरंत किसी और दिशा से आकर राम को फिर से चौंका दिया ..
अब इससे पहले की मृग फिर से अद्रश्य हो पाता.. राम ने शब्द भेदी बाँण चला दिया ..
बाँण लगते ही मायावी मृग अपने असली रूप में आया ....
लंकापति रावण के मामा मारीच ने स्वयं को मृत्यु के समीप पाया ...
मरने से पहले मारीच ने अपना अंतिम कर्तव्य निभाया ...
सीता सीता .. लक्ष्मण लक्ष्मण .. राम के स्वर मे चिल्लाकर ... सीता के कानों तक संदेशा पहुंचाया ...
सीता... राम के स्वर को झट से पहचान गई..
लक्ष्मण... तुम्हारे भ्राता भीषण संकट में है बोल गई ..
जाओ अपने भ्राता की रक्षा करो, उन्हें शीघ्र लेकर आओ ..
मेरा मन विचलित हो रहा है .. अब विलंब ना करो ... उन्हें शीघ्र अती शीघ्र लेकर आओ ..
लक्ष्मण ने बोला भाभी माँ ...
भैया राम का आदेश है की मैं उनके आने तक आपकी रक्षा करूँ ...
मैं आपको यहाँ ऐसे अकेले नही छोड़ कर जा सकता ...
भैया राम को दिया वचन.. मैं नहीं तोड़ सकता ...
सीता भयभीत हो गई ...
अपने स्वामी की चीख सुनकर भावुकता कारण बुद्धिहीन हो गई ..
लक्ष्मण पे आरोप लगा दिया ....
अपने भ्राता राम का स्थान लेकर .. तू ... मुझे पाना चाहता है कह दिया ....
लक्ष्मण से ये सुना न गया ..
माँ समान भाभी का ये आरोप सहा न गया ...
लक्ष्मण ने कहा ...
भाभी माँ, मैं अभी भैया राम को खोज कर लाता हूँ ...
पर जाने से पूर्व आपको सुरक्षित कर कर जाना चाहता हूँ ..
लक्ष्मण ने सीता के आगे अपने बाँण से चारो और एक गोलाकार रेखा खींच दी ...
और कहा ... भाभी माँ, आप इस रेखा के भीतर सुरक्षित है ...
और देखना ...
कुछ भी हो जाए ... आप इस सीमा रेखा को कदापि नही लाँघना ...
सीमा की उल्लंघना करने से ही अपराध जन्म लेता है ...
प्रेम आचरण और सत्कार सबकुछ सीमा में रह कर किया जाए तो सदैव बना रहता है ..
लक्ष्मण, भैया राम की खोज में चल दिया ..
यहाँ सीता का व्याकुल मन अपने स्वामी राम की चिंता मे लग गया ...
भिक्षाम देही ... भिक्षाम देही ..
एक साधु सीता के सामने आया ...
भिक्षाम देही.. भिक्षाम देही...
साधु ने सीता के सामने झोली फैलायी ...
कई दिनों से भूखा हूँ कह कर गुहार लगाई ..
सीता ने मुनिवर को प्रणाम किया ..
कुटिया के भीतर से फल फूल लाकर साधु को देने का प्रयत्न किया ...
किन्तु साधु रेखा के पार खड़ा था ...
ये कोई साधारण साधु नहीं अपितु कोई बडा मायावी था ...
उसने लक्ष्मण रेखा की शक्ति को भांप लिया था ..
करूँगा पार तो हो जाऊंगा भस्म जान लिया था ...
सीता ने कहा...
मुनिवर कृपया भोजन ग्रहण कीजिए .. मैं विवश हूँ ...
कृपया आप यहाँ आकर भोजन ले लीजिए ...
साधु ने कहा, भूखे साधु से कष्ट करने को कहती है ...
द्वार पे आए साधु को लौटाना चाहती है ...
भोजन देना है तो यहाँ आकर दे ...
नहीं तो मैं भूखा ही लौट जाऊँगा..
और जाते जाते तूझे कठोर श्राप भी दे जाऊँगा ..
सीता भयभीत हो गई...
एक ओर प्रभु श्री राम की चिंता और दूसरी ओर इस साधु की अकारण विवशता ..
सीता घबराहट कारण लक्ष्मण रेखा लाँघ गई ..
भय और भावनाओं के बवंडर में ऐसी उलझी की लक्ष्मण को दिया वचन भंग कर गई ...
जैसे ही सीता ने लक्ष्मण रेखा को पार किया ...
साधु ने झट से सीता को खींच लिया ..
अचानक एक हवाई विमान प्रकट हुआ..
साधु ने सीता को उसमें बैठा दिया ....
साधु अपने असली रूप में आया ....
हु हु हा हा हा करके रावण का भव्य विशाल भयावह दसानन दानवी रूप दिखाया ..
हु हु हा हा हा ....... ।।।