वाकिफ़ था मैं तुम्हारे ⠀
इस बदलते अंदाज़ से,⠀
पर ये बावरा मन ⠀
बहाने ढूंढ़ता था ⠀
इज़हार के,⠀
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दिल में एक “काश “ था,⠀
जिसे बयान मैं करना चाहता था,⠀
पर शायद मंज़ूर न था ये, ⠀
कहानी ने कुछ ऐसा रुख लिया,⠀
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की पास होकर भी तुम दूर हो गई,⠀
जिस जुबान पे हमेशा तुम्हारा जिक्र था ⠀
आज नम सी वो जुबान हो गई,⠀
और जो लिखे ख़त थे उनकी ⠀
स्याही भी रंग छोड़ गई ...........