सोचती रेहती दिन रात मैं
यूही खुद को कोसती हर हाल मैं
दिमाग का हाल देखा नहीं जाता
अंदर हीं अंदर से परेशान मैं
हर कोई अलग अलग सलाह देता
पता नहीं क्यू वो क्या मेरे बारे मैं सोचता
हाल ए जिंदा लाश हूं..
हार कर थकी हुई नार हूं
मेरे जैसा कोई हो नहीं सकता
इस किरदार को कोई सेह नहीं सकता
दर ब दर ये राहे गुमराह करती है
कोस कोस कर मन हीं मन मार देती है
जीने की तमन्ना अब भी रखती हूं
नये बडे ख्वाब अब भी देखती हूं
क्यू पल पल डरता है ये दिल
क्यू खुद को ताने मारे.. फिर भी
क्यू गिरकर बार बार खुद को संभाले
हजार बार टूट गयी फिर भी
उठ के खडी हुई...
हराना तो चाहता जमाना मगर
जितने का जुनून जो सवार है...
हार कर भी जितने को बाजीगर केहते है....
बाजीगर केहते है.......