कभी ना समझा कब बडे हो गये.. ..
असलं जिंदगी से वाकिफ हो गये...
जिम्मेदारी का बोझ कुच एसा आया...
की खुद को आयने मे तराशा ना गया..
कुच बाते बदल गई उम्र के साथ..
पर फासला कुच बाकी था..
शयाद अभी खुद को सवरना था...
वो दीन थे,जब हमारी भी हस्ती थी ...
कब न जाने तुटी वो कस्ती थी..
जिंदा होकार भी जिना भूल गये ..
हम तो खुद मे जिना भूल गये..
ना आयेगा ये वक्त ना ठरेंगी ये राते.....
सुबाह के सवरे मे खो गई वो राते....
कभी ना करणं खुद्द से समझोता..
जीत कर भी हार मे ये दिलं रोता...
अपनी हस्ती को बरकरार युही रखंना..
वरना जबरदस्ती खुद को जिंदा मत रखणं...
जायेंगे जब ये सूनहरे पल बितकर..
आयेंगे याद खुद चलकर....
अपना फासला कभी कमजोर ना हो..
बस कुच असर येसा हो...