कभी सोचा है ऐसा कभी देखा है
या आपने किया है ऐसा ??? पार्ट- 8
जेठ का महीना समारोहों,लग्नों का शोर शराबा था
देश निकाले को भी कुछ क्षण पहले अपना सा निमंत्रण आया
सोचा चलो एक और कोशिश करते हैं
जल्लादौं के शहर में थोड़ा बचके मौन बसर करते हैं l
निमंत्रण अनमना था लेने भी वक्त पे वो आया ही नहीं
जिसको सिद्दत से आना था l
आखिर कली को अपना घर " अंधेर नगरी "भी दिखाना था ये और कि चारों तरफ निष्ठूर, अन्यायी , भावना हीन, अन्तर भेदी, कर्महीन, क्रूर नि्र्लज्जों का जमाना था l
उस अनमने बुलाबे पे किसी तरह आना हुआ
यहीं से गहरे छुपे राज और रहस्यों से परदे को परत दर परत उठ जाना हुआ l
समारोह का हर दिन हर क्षण खुले साजिश और गुनाहों का फसाना हुआ l
अंधेर नगरी में नई बहु का आना,हुआ उसके रिश्ते तीन बार ठुकराये गये फिर भी देखो इसी घर में मेरा आना हुआ
नई बहू के लब पे हरशुं सजा यही तराना हुआ l
ये अफसोसे जहर जिरह या दिले मलाल था उसका
या जघन्य अपराध की पहीली सीढ़ी पे फतह का अभिमान l
समझ से परे सबके ये फसाना हुआ l
रोज की दुर्घटनाओं की रही-सही खलिश पुरी हुयी l
हर क्षण, पल- पल साजिसों का मजमा लगा l
कुछ दिनों में ही जघन्य अपराधिक सम्बधों से परदा उठाने की हिमाकत की उसने l
रिश्तों ने जब सहज भाव उसको स्वीकार किया, उसने भी खुला एलान दिया,सबकी सहमती से एक घर मिटाने आयी हूं, तीन बार ठुकराई गई हुं प्रतिशोध जहर बन के आई हूं l
समझना कितना आसान हुआ -- अंधेर नगरी चौपट राजा टके सिर भाजी टके सिर खाजा l
जल्लादों के शहर में एक और गुनहगार खुले दिल से पुरी शय से शाबाशी से आपस में मिलाया गया l
जुल्मों की इन्तहां वहीं से फास्ट ट्रैक पे है
ऊपर की अदालत में मुकदमा अब भी बाकी है l
- नीरू कृषिका l