जाने कैसे कब …. ये अंचभा हुआ ,
मेरा मन अब…. मेरा ना हुआ ,
ये होकर अधीन… किसी ओर के ,
मेरे मन का कोना……खाली कर गया |
जागीर नहीं है… अब ये मेरी ,
करता नहीं अब… बंदगी मेरी ,
ना सजदे में झुकता… चौखट मेरी ,
करता सरेआम… तौहीन मेरी |
मुझमें मिलता नहीं… मेरे मन को ठौर ,
जाने मूझमें … मन की ये कैसी है दौड़ ,
मन होकर मलंग.... मचाए है शोर ,
वश में नहीं.... अब रखना इस पर जोर |
मन कर रहा . .. आज मुझसे ही छल ,
होकर किसी ओर का… . हुआ ये सबल ,
जिस्म से रुह तक..… उसकी ही इबादत ,
मन कर रहा……. अब मुझसे ही बगावत |
उसकी ही मर्जी …. उसका ही हक ,
मेरे वजूद पर…. हुआ मुझको ही शक ,
शायद गुलाम हूं मैं …. मन की… मन से ,
मुझको मिली है…..मात…..तभी मेरे मन से |
🙏🙏