नर -नारी दोनों का ही,ईश्वर तूने सृजन किया,
आखिर किस्मत लिखने मे,फिर क्यों तूने भेद किया,
हर युग मे नारी का ही, क्यूँ इतना अपमान हुआ,
कभी मन पर,कभी तन पर,क्यूँ हर बार अत्याचार हुआ।
आज आसमान रुदन कर रहा ,
धरती माँ भी चीख रही ,
जब कहीं किसी बेटी की लाज लुटी ,
सुनकर हर बेटी की रूह काँप उठी ।
मुँह लज्जा से झुक जाता है ,
अंतरआत्मा लहू लुहान हो जाती है ,
जब कहीं किसी बेटी की अस्मत ,
यूं सरेआम लुट जाती है ।
क्यूँ तू नजरें जमाने से चुराती है....?
जब इसमे तेरा कोई दोष नही ,
नारी बनकर जन्म लिया,ये तो तेरा कसूर नही ,
शर्मिंदा हों वो हैवान ,जिसने ऐसा कुकृत्य किया ,
दु:शासन बनकर जिसने,मानवता को शर्मशार किया ,
हवस मिटाने की खातिर ,तेरे पाक दामन पर वार किया ।
चुप रहकर ना करना ,नारी जाति को तू बलहीन ,
तेरी खामोशी से ना मिलेगी ,इन वहशियों को कोई भी सीख,
क्यूँ हर कदम कदम पर,तेरी ही होती अग्नि परीक्षा,
क्यूँ नही पूछता तुमसे, क्या कोई है तेरी.भी इच्छा ।
है हर जन से यही सवाल, क्यूँ है आज भी बेटी का ये हाल,
क्या इन सिसकियों को सुन ,क्रोध तुम्हे नहीं आता है ,
दोषी को जानकर भी ,खून तुम्हारा नही खौल जाता है,
बहुत हुए नियम कानून ,बहुत रख ली हमने धीर ,
अब हर दोषी को सरेआम होगी वो सीख ,
ताकि ना घायल हो ये मन ,सुनकर किसी मासूम की चीख ।