अविरल, निर्मल बहती नदिया की धारा सी तुम,
किसी कवि की कल्पना से उतरी कविता हो तुम।
शीतल, मंद महकती बगिया की सुगंध सी तुम,
किसी शायर की तन्हाइयों में गुनगुनाई गज़ल हो तुम।
दूधिया, सर्द छिटकती चौदहवीं की चाँदनी सी तुम,
किसी लेखक की कलम से लिखी खूबसूरत रचना हो तुम।
सम्पूर्ण धरा को खुद मे समेटती कुदरत का करिश्मा सी तुम,
मेरे दिल की गहराइयों से निकली कोई तमन्ना हो तुम।
............. कुसुम✍🏻