आ लौट चले फिर से, उस गांव की बस्ती में।
जहां कोई गैर नही,सब जीते मस्ती में।
आ लौट चले फिर से --------
जहां आज भी मतलब है,इस दुनिया दारी से।
जहां यकीं है,आज भी उतना ही दोस्ती और यारी में।
चल फिर से सैर करें,वो नदी की कस्ती में।
आ लौट चले फिर से ---------
कुछ अधिक है भेद नहीं,इस धनी गरीबी में।
कुछ अंतर खाश नहीं, मूर्खों बुद्धिजीवी में।
हम झूठे सान किए,इस दौलत हस्ती में।
आ लौट चले फिर से --------