जिंदगी कड़वी थी तू
फिर भी तुझको जी लिया
लम्हा लम्हा गुजारा तुझे
कतरा कतरा जी लिया।
जिंदगी कड़वी,,,,,,
कभी खुशी कभी ग़म
देती रही तूं सदा
सोचती थी कभी होगी
तू मेरे मनमुताबिक
उधड़ी उधड़ी जब मिली
मैंने तुझको सी लिया।
जिंदगी कड़वी,,,,,
तू तो बस कहती रही
अपने बारे में सभी
तूने कुछ पूछा नहीं
मेरे बारे में कभी
मशवरा जब भी किया
साथ तुझको भी लिया।
जिंदगी कड़वी,,,,,
भागती रही रात दिन
तोड़, किनारे बंध की तरह
ठहरी कभी न एक पल
देखती मुझको ज़रा
मैं खुश हूं या गमगीन
जाना नहीं तुमने कभी।
जिंदगी कड़वी,,,,,
कभी न दिया मौका
सोचती कुछ अपने लिए
मैं हूं क्या चाहतीं
पूछा नहीं तुमने कभी
उम्र भागती ही गई
सबकुछ पीछे छोड़ कर
सोचती हूं अब मैं
क्या तूझे जी पाईं मैं।
जिंदगी कड़वी,,,,,
तपती धूप पर पड़ जाने दे
कुछ छांव के छीटें ज़रा
हो सके तो लौट चल
दो कदम पीछे जरा
जब सफर करना पड़ा
साथ तुमको ही लिया।
जिंदगी कड़वी थी
फिर भी तुझको जी लिया।
मंजू ओमर
झांसी
15 मई 22
रचना र्पूणतया मौलिक और स्वरचित है