आत्मा को आत्मा के पास जाना है, पर हम ही अपने आत्मा को हमसे मिलने नही देते है. क्यू हम अपने अंदर झाँकते नहीं है,अंदर झाँकना बहोत जरूरी है, हम सब बाहरी दुनिया मे झाँकते है, हमारा सच्चा अपना दोस्त हमारा मन है, पर हम उसे ही दुश्मन मान बैठे है,या उसको ही दुश्मन बना रहे है, और पूरी दुनिया को दोस्त समजते है और अपने होश उडा लेते है, मदमस्त हो जाते है, और हमारी आत्मा से हम एकरूप नहीं हो पाते है. और दुनिया मैं सहारा ढुँडते है, जब की, तू खुद अहं ब्रम्हास्मि है. फिर भी दुनिया का गुलाम बना हुआ है. गुलामी को पहचान अपने आपको/ खुद को तू पहचान तेरा अस्तित्व क्या है तु जान ले, तेरे अस्तित्व को और के अस्तित्वसे मत मिला, दूसरो के अस्तित्व को देखना छोड दे.और खुद्द के अस्तित्व को बडा कर. क्योंकी तु खुद्द ब्रम्ह है,और अपने आप मै ही एक वटवृक्ष है. तुझे उस पेड की तरहा बहोत बडा बनना है. और हर एक को छाव देनी हैं, बहोत करली नादानिया अब एक जरया बन कर जो लोंगो अपने मै अटके हैं, रुके पडे हैं या थम से गये हैं उनको तुझे जगाना हैं, दरया बनकर बेहना हैं और हर एके दिल के पास तुझे पोहचना हैं उनके अंदर की आवाजी उन्हे पेहचान करवा देनी हैं. तु वह सब कर सकता हैं, जो तुझे लगता हैं, तु नहीं कर पायेगा. वह तु सबकुछ कर सकता हैं, क्योंकी तु खुद्द एक अपने आप मै ही मिसाल हैं. तो उठ खडा हो जा और खुदसे ही लढाई कर के खुद्द के अंदर की कमजोरी को मार डाल और आगे बढता जा. सारे रास्ते भी तेरी राह देख रहे हैं, वह भी तुझे मिलने तयार हैं. अब मौका गवा मत बस आगे ही जाना हैं और सफलता को प्राप्त करना हैं.
प्रीती लांडगे.