फ़रहाद ने अपने दस्ते मुबारक से
मुश्किल वो एक काम किया था
कहने पे अपने महबूब के
क्या नाम किया था
इतिहास के पन्नों में
मौजूद हैं वो लम्हे
जब शीरीं के लिए
नहर का आग़ाज़ किया था
मोहब्बत में ऐसा असर
हो के ,ख़ुदा भी हो जाए राज़ी
सच्चाई और शिद्दत हो तो
कोई काम नहीं है ना मुमकिन
हर हाल में जीतें----हारी हुई बाज़ी ।।
NJ Writes...