" नाराजगी !"
बंदिशी तवायफों की,
शहर से गुजरी कहाँ
बसगई कोंठों को सजाकर,
उनके उजडे घर जहाँ.....
नाराजगी कीससे है,
उनकी घुँगरू मे नही
बजकर पैरों मे हरदिन,
उसे सुकून आराम कहाँ.......
नुमाईश हुन्स की करती,
खातीर सौंदागरों के लिए
पसंदी में नाचते चाँद को,
अंधेरे का उजाला सारा जहाँ......
इत्तर में डूबे ख्वाब को,
आँसूओंसे सिंचते हूवे
तेजाब में महके गजरे को मिला,
हावस का कानुन कहाँ...........
उजडे चमन जीनके,
जीतके कफन बाँधकर
प्रदिप लिखकर तेरी हकीकत को,
देखता अंधा जमाना कहाँ.......
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कवी-प्रा.प्रदिप इजारदार