दो पेड़ो की शादी की बात
चल रही थीं
चाहते भी थे वो वक दूजे को
सज्जा रहे थे वो ख्वाबो को
अपने
टहनियों को अपनी मिलाकर
करते थे बात दिल की
ख़ुश था पुरा जंगल शादी से
उनकी
एक रात आंधी आई
और तूफ़ान बन गई
हवा उन पेड़ो के लिए
जैसे काल बन गई
एक दूसरे को संभालते हुए
दोनों लड़ रहे थे ज़िन्दगी को अपनी
लेकिन किस्मत के आगे कब चली है किसकी
पेड़ की प्रेमिका तूफ़ान से हार गई
और टूट के वो ज़मी से आ मिली
शांत उस माहौल में अब तरस
पेड़ पे था
निःशब्द सा खड़ा वो भी
किसी पेड़ सा था
समय के साथ मुरझा गया याद में उसकी
औऱ इस तरह रह गई
पेड़ो की शादी